Cheque Bounce New Rule: हम सभी जानते हैं कि आज के समय में डिजिटल (Digital) लेन-देन की प्रक्रिया बहुत ही तेजी से बढ़ रही है लेकिन इसके अलावा भी आज जितने भी बड़े-बड़े पेमेंट करने होते हैं उनको चेक के माध्यम से किया जाता है।
इसलिए चेक का प्रचलन भी वर्तमान समय में काफी तेजी से बढा है। लेकिन चेक (Cheque) से पेमेंट करते समय कई तरह की परेशानियों का सामना लोगों को कर रहा है जिसमें सबसे बड़ी समस्या है चेक बाउंस होने की।
जो आज के समय में सबसे बड़ा चर्चा का विषय माना जाता है क्योंकि इससे जुड़े हुए मामले आपको सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में बहुत ज्यादा देखने को मिलेंगे।
इसी बात को ध्यान में रखते हुए अब हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की तरफ से एक ऐसा फैसला सुनाया गया है जिससे चेक बाउंस से जुड़ी हुई समस्या को काफी हद तक काम किया जा सकेगा।
चेक बाउंस को लेकर Supreme Court का फैसला
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि आज से पहले तक ऐसा नियम था कि अगर चेक बाउंस (Cheque Bounce) होता है तो यह एक अपराधिक मामला है।
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क्योंकि भारतीय निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 की धारा 138 के तहत, यदि कोई चेक बाउंस होता है तो इसमें दोषी पाए जाने वाले व्यक्ति को 2 साल तक की सजा वही चेक में भरे गए अमाउंट की दोगुना राशि जुर्माने के तौर पर चुकानी होती थी।
सुप्रीम कोर्ट में ऐसे बहुत सारे मामले हैं जिन पर अभी भी कार्रवाई चल रही है लेकिन अभी तक कोई भी फैसला नहीं आया है।
सुप्रीम कोर्ट का नया फैसला
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय लिया है। कोर्ट ने कहा है कि निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 (Negotiable Instruments Act, 1881) की धारा 141 के तहत किसी व्यक्ति को सिर्फ इसलिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि वह कंपनी का पार्टनर या लोन गारंटर था।
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पहले क्या था नियम?
भारतीय कानून के तहत, चेक बाउंस होने पर इसे भारतीय दंड संहिता (Section 138, NI Act) के तहत आपराधिक अपराध माना जाता था। दोषी पाए जाने पर:
- 2 साल तक की सजा हो सकती थी।
- चेक की राशि का दोगुना जुर्माना लगाया जा सकता था।
नया बदलाव
अब सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि कंपनी का पार्टनर होने या गारंटर के तौर पर जुड़े होने मात्र से व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जाएगा।
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चेक बाउंस पर क्या कहता है कानून?
भारतीय निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 (Negotiable Instruments Act) की धारा 138 के अनुसार, चेक बाउंस होना एक आपराधिक अपराध है।
- सजा: दोषी को 2 साल तक जेल या चेक की रकम का दोगुना जुर्माना भरना पड़ सकता है।
- मामले की प्रकृति: अधिकांश मामलों में यह साबित करना जरूरी होता है कि चेक बाउंस का कारण जानबूझकर धोखाधड़ी है।
सुप्रीम कोर्ट के पास चेक बाउंस से जुड़े 35 लाख से अधिक मामले लंबित हैं, जो इस समस्या की गंभीरता को दर्शाते हैं।
खैर सुप्रीम कोर्ट की तरफ से लिया गया यह फैसला कितना कारगर साबित होता है यह तो आने वाले समय में ही पता चलेगा। लेकिन वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट के पास लगभग 35 लाख से भी अधिक ऐसे मामले है जिनका अभी तक निपटारा नहीं हो सका है।
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