One Nation One Election : वन नेशन वन इलेक्शन का मामला लगातार टूल पकड़ रहा है। केंद्रीय कैबिनेट ने एक देश एक चुनावी को मंजूरी दे दी है। रिपोर्ट की माने तो शीतकालीन सत्र में विधेयक संसद में पेश किया जा सकता है। इससे पहले समय कार्य बल और पैसों की बर्बादी को रोकने के लिए पीएम मोदी सरकार द्वारा चुनाव व्यवस्था में बदलाव पर लगातार जोर दिया जा रहा है।
लंबे समय से वन नेशन वन इलेक्शन जैसे मुद्दों पर चर्चा की जा रही है। इस प्रस्ताव को सितंबर में मंत्रालय ने मंजूरी दी थी। अब बिल को भी केंद्रीय कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है। इस बिल को सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जज समेत 18 दलों का सपोर्ट मिल चुका है।
बिल पर कैबिनेट की मंजूरी
वहीं कांग्रेस आरजेडी समेत कई विपक्षी दल अभी भी इसके विरोध में है। बिल पर कैबिनेट की मंजूरी पर कई नेताओं की प्रतिक्रिया भी सामने आई है। वन नेशन वन इलेक्शन जैसे भी लागू होने पर भारत के चुनावी सिस्टम में कई महत्वपूर्ण बदलाव होंगे। इसके लिए कई चुनौती भी सामने आ सकती है।
वन नेशन वन इलेक्शन के प्रभाव
एमपी पंजाब उत्तराखंड और गोवा का कार्यकाल 3 से 5 महीने का हो जाएगा जबकि हिमाचल नागालैंड तमिलनाडु मेघालय समेत कई राज्यों के कार्यकाल में भी कमी आ सकती है। दो चरण में चुनाव आयोजित किए जाएंगे। पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा और चुनाव एक साथ होंगे जबकि दूसरे चरण में नगर पालिका और पंचायत चुनाव एक साथ किए जाएंगे।
वन नेशन वन इलेक्शन के फायदे
वन नेशन वन इलेक्शन बिल से सभी चुनाव के लिए एक ही वोटिंग लिस्ट होगी और वोटर आईडी कार्ड भी सभी के लिए एक ही जारी किए जाएंगे। इससे पहले गोविंद कमेटी की रिपोर्ट में वन नेशन वन इलेक्शन के कई फायदे भी बताए गए हैं। जिससे अर्थव्यवस्था में स्थिरता सहित नागरिकों के लिए चुनावी प्रक्रिया आसान और करप्शन कम होने जैसे बात कही गई है।