Neuroticism Explainer : क्या आप भी फिल्म या किसी भी भावात्मक स्थिति को देखकर रोने लगते हैं? क्या ऐसा हो सकता है कि जो लोग ज्यादा भावुक हो वह फिल्मों में इमोशनल सीन देकर रो देते हैं। ऐसा यदि होता है तो उनकी लंबी आयु को प्रभावित होने की संभावना है। इसके ऊपर एक रोचक स्टडी सामने आई है।
रोचक संबंध के संकेत
स्टडी में इस सवाल का वह दिलचस्प नतीजा देखने को मिलता है। लोगों के अध्ययन पर आधारित इस तरह के रिसर्च में भावुकता और शरीर के रोगों में रोचक संबंध के संकेत मिले हैं। इतना ही नहीं स्टडी में एक बेहद ही रोचक बात निकलकर सामने आई है।
यदि आप भी किसी भावात्मक और इमोशनल सीन को देखकर रोने लगते हैं या फिर आप अधिक भावुक है तो आपकी उम्र पर इसका असर देखा जा सकता है।
न्योरिटिसिज्म से पीड़ित लोगों के व्यवहार पैटर्न पर Study
स्टडी में वैज्ञानिकों ने खुलासा किया कि जो लोग फिल्में देखते समय रोते हैं या उन्हें रिजेक्ट होने का डर रहता है। यह जो सामान्य हालात को भी खतरे के तौर पर देखते हैं। ऐसे लोग के जल्दी मरने की संभावना अधिक होती है।
ऐसे लोगों में जल्दी मरने का खतरा बढ़ता है और उनकी जोखिम अधिक होती है। स्टडी में पाया गया है कि यह न्योरिटिसिज्म से पीड़ित लोगों के व्यवहार पैटर्न पर है और ऐसी पर्सनालिटी के गुण समय से पहले मृत्यु के जोखिम को 10% तक बढ़ा देते हैं।
क्या है न्योरिटिसिज्म ?
बता दे की न्योरिटिसिज्म उदासी और चिड़चिड़ापन जैसे नेगेटिव थॉट से संबंधित है। ऐसे में इसमें चिंता और अकेलेपन जैसे कई हिस्से सामने आते हैं, जो व्यक्ति के दिमाग और शरीर को प्रभावित करते हैं।
शोधकर्ता के मुताबिक अकेलेपन को वैज्ञानिक ने समय से पहले मृत्यु का सबसे मजबूत कारण बताया है क्योंकि इसमें श्वसन और पाचन तंत्र की बीमारी और जानबूझकर खुद को नुकसान पहुंचाने की संभावना भी बढ़ जाती है।
स्टडी में खुलासा
जर्नल ऑफ़ इफेक्टिव डिसऑर्डर में प्रकाशित स्टडी में फ्लोरिडा स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं की टीम ने एक बेहद ही रोचक चीज पाई। डेटाबेस के बायो बैंक में 5 लाख लोगों के जैविक नमूने, जेनेटिक्स और स्वास्थ्य संबंधित जानकारी सही जीवन शैली के विशाल डेटाबेस हैं। इन डेटाबेस में उनके न्योरिटिसिज्म मूल्यांकन 2006 और 10 के बीच पूरे किए गए हैं।
वैज्ञानिक ने इन लोगों के जीवन में 17 सालों तक नजर रखी। शोध के प्रतिभागियों के जीवन की स्थिति डाटा और न्योरिटिसिज्म स्कोर का उपयोग किया जाने के लिए किया गया कि क्या व्यक्तित्व विशेषता और कुछ अन्य मामलों में समय से पहले मृत्यु में कोई मजबूत संबंध है। 17 साल में लगभग 5 लाख प्रतिभागी में से 43400 की मृत्यु हुई है, जो कुल डाटा का 8.8 प्रतिशत है।
डाटा के अनुसार मृत्यु की औसत आयु 70 वर्ष है और मृत्यु का प्राथमिक कारण कैंसर था। जिसके बाद तांत्रिक यंत्र, श्वसन तंत्र और पाचन तंत्र की बीमारी इसके लिए देखने को मिली है। मूल्यांकन में थके हुए महसूस करते लोग सबसे अधिक पाए गए हैं।
इसके अलावा इन लोगों में से 291 लोगों ने जानबूझकर खुद को नुकसान पहुंचा और वह मृत्यु को प्राप्त हुए। इन लोगों ने कहा कि उन्हें अपराध बोध और मूड स्विंग महसूस होते थे और वह लगातार तनाव में रहते थे। ऐसे में वह अकेलापन महसूस करने लगे थे।
वरिष्ठ लेखक और फ्लोरिडा स्टेट यूनिवर्सिटी के जेनेटिक्स के प्रोफेसर एंटोनियो देरासियनों ने कहा कि आश्चर्यजनक है कि अकेलेपन का न्योरिटिसिज्म के अन्य हिस्सों की तुलना में अधिक प्रभाव रहा है।
नतीजे से पता चलता है कि जो लोग अकेले होने की बात करते हैं, उन में मृत्यु का जोखिम उन लोगों की तुलना में अधिक होता है, जो चिंतित या दोषी महसूस करते हैं। ऐसे में अकेलापन और अधिक भावुक होना, व्यक्ति के जीवन के लिए हानिकारक हो सकता है
उच्च मृत्यु दर के जोखिम
बता दे कि मूड स्विंग और उबाऊ महसूस करना न्योरिटिसिज्म के अन्य पहलू बताए गए हैं, जो उच्च मृत्यु दर के जोखिम से संबंधित है। टीम को इसमें एक अन्य रोचक तथ्य भी देखने में मदद मिली। शिक्षा में पाया गया कि यह पुरुषों में सबसे मजबूत था।
54 वर्ष से कम उम्र के लोगों के साथ-साथ उन लोगों में भी यह अधिक पाया गया है,, जिनके पास कॉलेज की डिग्री नहीं है। ऐसे में यह लोग न्योरिटिसिज्म के शिकार हैं।
भावना को इंसान और मानव के भीतर का सबसे मजबूत तंत्र और स्थिति माना गया है लेकिन ज्यादा भावुक होना सेहत के लिए हानिकारक साबित हो सकता है।
अधिक इमोशनल लोग के जल्दी मरने की संभावना अधिक होने की यह रोचक नतीजे बेहद चौंकाने वाले हैं। इसके साथ ही जो लोग अकेलेपन और अपराध बोध के शिकार होते हैं, उनके भी मृत्यु के संभावना अधिक होती है।